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कुलगाम हत्याकांड के बाद कश्मीर से डरे-सहमे श्रमिकों का पलायन, चार दिन में छह हजार मजदूरों ने छोड़ा वादी

कुलगाम हत्याकांड के बाद कश्मीर से डरे-सहमे श्रमिकों का पलायन, चार दिन में छह हजार मजदूरों ने छोड़ा वादी
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श्रीनगर। पहले गैर कश्मीरी ट्रक चालकों की हत्या और उसके बाद कुलगाम में पश्चिम बंगाल के पांच मजदूरों के सामूहिक हत्याकांड ने कश्मीर में आए अन्य राज्यों के श्रमिकों को घाटी से पलायन के लिए मजबूर कर दिया है। पिछले चार दिनों में कश्मीर से लगभग छह हजार श्रमिक अपना बोरिया बिस्तर लेकर निकल गए हैं। हालांकि प्रशासन ने श्रमिकों को सुरक्षा का यकीन दिलाया है, लेकिन वे रुकने को तैयार नहीं हैं। श्रमिकों के पलायन से वादी में शुरू हुए निर्माण कार्य फिर ठप हो सकते हैं।

न्यू कश्मीर बिल्डर्स एंड कांट्रेक्टर्स एसोसिएशन के सचिव फिरोज अहमद फाफू ने कहा कि बड़ी मुश्किल से पिछले माह यहां अन्य राज्यों के श्रमिकों की आमद शुरू हुई थी। इससे यहां जारी सड़क, पुल और विभिन्न सरकारी इमारतों के अलावा कई निजी इमारतों के निर्माण ने गति पकड़ी थी। अब एक बार फिर यह काम बंद हो रहे हैं, क्योंकि गत मंगलवार को कुलगाम में हुए हत्याकांड के बाद श्रमिक वापस जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि श्रमिक डरे हुए हैं। श्रीनगर के बाहरी क्षेत्र नौगाम में एक ट्रक में सवार होकर जम्मू के लिए रवाना हो रहे बलवान ने कहा कि मैंने तो ठेकेदार के पास अपनी पांच दिन की मजदूरी छोड़ दी, क्योंकि वह चाहता है कि मैं कुछ और दिन यहां ठहर जाऊं, लेकिन पांच हजार के लिए जान नहीं दूंगा। लालचौक के साथ सटे सेंट्रल मार्किट में निर्माणाधीन बहुमंजिला कार पार्किंग के निर्माण में शामिल उत्तर प्रदेश के विकास कुमार नामक श्रमिक ने कहा कि हमने एक माह का करार किया हुआ है। बस 15 दिनों में यह करार पूरा हो जाएगा और उसके बाद मैं यहां से पहली गाड़ी पकड़ लूंगा। रोज घर से फोन आ रहा है, सभी परेशान हैं।

कश्मीर चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज के चेयरमैन शेख आशिक ने कहा कि पहले राज्य सरकार ने आतंकी हमले की आशंका जताते हुए सभी बाहरी श्रमिकों को यहां से जाने की एडवाइजरी जारी की थी। इसके बाद यहां फैक्टरियों से कारीगर चले गए, बाहरी नाई-हलवाई गायब हो गए। ईंट भट्ठों पर काम करने वाले नहीं रहे।

सितंबर माह के दूसरे पखवाड़े के दौरान यहां स्थानीय उद्योगपतियों और ठेकेदारों ने किसी तरह बाहरी राज्यों से अपनी जान-पहचान के लोगों के साथ संपर्क कर श्रमिकों की आमद को शुरू कराया था। इससे थोड़े बहुत श्रमिक भी कश्मीर पहुंचे और निर्माण कार्य शुरू हुए, कई कारखाने भी चलने लगे। बागों में भी सेब उतारने वाले नजर आने लगे। सरकार को इनकी सुरक्षा का बंदोबस्त करना चाहिए था, क्योंकि इन्हें निशाना बनाना आसान रहता है और यही हुआ है। अब ये लोग जा रहे हैं।कश्मीर में अन्य राज्यों के श्रमिकों की संख्या का कोई पक्का आंकड़ा नहीं है, लेकिन विभिन्न गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा समय समय पर किए गए सर्वे के आधार पर गर्मियों में इनकी तादाद आठ से दस लाख रहती है। सर्दियों में यह संख्या करीब दो लाख रहती है।

श्रमिकों की सुरक्षा के कदम उठाए जा रहे :

राज्य पुलिस में एसपी रैंक के एक अधिकारी ने कहा कि आतंकी इस समय किसी भी तरह से कश्मीर में हालात बिगाड़ने के लिए हताश हैं। उन्हें इस्लाम की मर्यादा, कश्मीर की खुशहाली या इंसानियत से कोई सरोकार नहीं है। बाहरी श्रमिक जो अलग-अलग जगहों पर रहते हैं, उनके लिए आसान निशाना हैं। आतंकी जानते हैं कि वह उन्हें आसानी से निशाना बना सकते हैं और सिर्फ कश्मीर में ही नहीं पूरे हिंदुस्‍तान में सनसनी पैदा कर सकते हैं। इसलिए कभी वह ट्रक चालकों को निशाना बना रहे हैं तो कभी बाहरी श्रमिकों को। खैर, अब हमने इन लोगों की सुरक्षा के लिए एक विशेष कार्ययोजना पर काम शुरू कर दिया है। बाहरी श्रमिकों में सुरक्षा और विश्वास की भावना पैदा करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रहे हैं।

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