Publish Date:Tue, 16/June 2020
R24News : विडंबना देखिए। जिस जगह प्रभार में रहे, वहीं का खजाना खाली कर बैठे। अपना विभाग तो चकचक कर लिया। दूसरा अब दर-दर झोली फैला रहा है। दो प्रमुख विभाग हैं। झारखंड खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकार (झमाडा) और नगर निगम। झमाडा परिसर में ही नगर निगम का कार्यालय है। इसके लिए नगर निगम उसको किराया देता है। 2016 से यह बंद है। दरअसल निगम के साहब तब से लेकर कुछ महीने पहले तक झमाडा के प्रभारी बने रहे। इस दौरान एक रुपया किराया नहीं दिया। रुपये बचे तो अपने विभाग के कामों में धड़ल्ले से खर्च करते रहे। इस तरह निगम पर 43 माह का भाड़ा बकाया हो गया। हाल ही में झमाडा को स्थायी साहब मिले। बस, नोटिस भेज दिया। एक करोड़ 45 लाख 53 हजार 491 रुपये जमा करें। 15 फीसद ब्याज भी ठोका। अब संशोधित दर से भाड़ा वसूला जाएगा। बुरा फंसा निगम।
सड़क से शौचालय तक घोटाला
कहते हैं एक आफत आती है तो कई और मुंह उठा लेती है। नगर निगम में कुछ ऐसा ही हो रहा। चौतरफा हमले हो रहे हैं। पहले एसीबी, नगर विकास विभाग और अब स्वयं मुख्यमंत्री। घोटाले की पोल खुल रही है। सड़क से लेकर शौचालय तक घोटाला। 200 करोड़ की इंटीग्रेटेड सड़क की जांच की आंच ठंडी नहीं हुई है। अब शौचालय निर्माण में भी भाई लोगों का खेल सामने आ गया। 1355 लाभुकों को 12 हजार की जगह 18 हजार रुपये का भुगतान कर दिया गया। गड़बड़ पकड़ में आई तो 400 से पैसा वापस लिया गया, बाकी नदारद। कहां खोजें। धनबाद में 42 हजार शौचालय के लिए राशि जारी हुई। जांच में 40 फीसद ही बने मिले। लगभग 20 करोड़ का घोटाला है। एक साल से मामला अटका है। अब मुख्यमंत्री ने संज्ञान लेकर विजिलेंस को सौंप दिया है। गर्दन तो फंसेगी ही।
टीचर का बेमिसाल कंप्यूटर ज्ञान
लॉकडाउन में ऑनलाइन कक्षाएं चल रही हैं। शिक्षक भी अपने फोन एवं कंप्यूटर की नई विशेषताओं से परिचित हो रहे हैं। बरटांड़ की अंग्रेजी शिक्षिका मोबाइल पर बच्चों को देने के लिए असाइनमेंट लिख रही थीं। इसे कॉपी कर वाट्सएप के अलग-अलग ग्रुप में पेस्ट करना था। याद आया कि गैस स्टोव पर भगोने में दूध उबल गया होगा। बस, कूदते-फांदते रसोईघर की ओर दौड़ गईं। दूध उबला नहीं था। पतिदेव ने सोचा थोड़़ी मदद कर दूं। पूछा- मैं ग्रुप में भेज दूं। जवाब मिला- तुमसे न हो पाएगा। हमने कॉपी किया है तो पेस्ट हम ही करेंगे। पांच मिनट बाद सारे ग्रुप में असाइनमेंट डाल दिया। इस पर श्रीमानजी ने पूछा- यह तो मैं भी कर सकता था। मगर, मैडम के जवाब ने उन्हें निरुत्तर कर दिया। अपनी तर्जनी दिखाते वह बोलीं- जब कॉपी इस अंगुली से हुआ तो पेस्ट इसी से होगा न।
7.5 फीसद चाहिए या जान
नगर निगम ने होल्डिंग और वाटर यूजर चार्ज वसूलना शुरू कर दिया है। एडवांस होल्डिंग जमा करने पर साढ़े सात फीसद की छूट। ऑनलाइन पर दस फीसद। 30 जून तक यह सुविधा मिलेगी। लोगों ने धड़ाधड़ टैक्स जमा करना शुरू कर दिया। ऑनलाइन में समस्या शुरू हो गई। सोचा दस न सही साढ़े सात फीसद तो बचेगा। बस फिर क्या था, निगम कार्यालय में मेला लग गया। शारीरिक दूरी की धज्जियां उड़ गईं। एक-दूसरे से चिपककर लोग लाइन में लग गए। किसी का चेहरा खुला तो किसी पर मास्क। पत्रकार बंधुओं का अचानक फ्लैश चमका। फिर भी लोग टस से मस नहीं हुए। जगह छोड़ी तो छूट भी छूट जाएगी। निगमकर्मियों के हाथ पांव फूल गए। अधिकारियों को सूचना दी। पूरा अमला लाइन हटाने में लग गया। काफी मशक्कत के बाद सब हटे। आखिरकार पूछना पड़ गया 7.5 फीसद चाहिए या जान। कुछ बोले- दोनों।


