Publish Date:Fri, 8/May 2020
R24News : धनबाद। कहते हैैं न, आपका निर्देश सिर-आंखों पर। लेकिन, यहां तो निर्देश सिर के ऊपर से जा रहा है। बीसीसीएल की खदानें दो राज्यों के तीन जिलों में फैली हैं। लॉकडाउन होते ही कुछ कर्मचारी दूसरे जिले तो कुछ दूसरे राज्य में फंस गए। निर्देश हुआ कि नजदीकी कार्यालय में हाजिरी बना लें। 36 दिन बाद लगा कि यह लाभकारी नहीं है। सो कहा कि पास लेकर कार्यक्षेत्र तक पहुंचें, वहां का खाली आवास अस्थाई तौर पर दिया जाएगा। अब अधिकारी वर्ग तो ऑनलाइन आवेदन कर आ गए। मजदूर कहां इतने पढ़े-लिखे हैैं। सो वे पूर्ववत फंसे हैैं। हर जगह आवास भी नहीं। ब्लॉक-2 को ही लीजिए। माटीगढ़ा, भीमकनाली के 400 के करीब मजदूर बोकारो में फंसे हैैं। उन्हें लाने को कोई क्वार्टर ही खाली नहीं। सो अधिकारी भी चुप्पी साधे बैठे हैैं। साहब के निर्देश के 12 दिन बाद भी वर्कआउट कर रहे।
भूखे भजन न होय गोपाला
केंद्र और राज्य की सरकारें निजी कंपनियों को वेतन भुगतान नियमित करने के लिए कह रहीं, लेकिन उनके अपने कर्मी ही फांकाकशी में दिन गुजार रहे। स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) की कोयला खदानें चासनाला इलाके में पड़ती हैं। वही खदान जिसमें हादसे पर फिल्म काला पत्थर बनी थी। लॉकडाउन की वजह से सार्वजनिक उपक्रमों की यह सिरमौर कंपनी भी आर्थिक संकट में फंस गई है। लिहाजा, मई में कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल सका है। ठेकाकर्मियों की छोडिय़े, नियमित कर्मचारी को भी वेतन के लाले पड़े हैैं। ऐसे में ट्रेड यूनियन सक्रिय हो उठी हैैं। स्पष्ट चेतावनी दे दी गई है कि अगर जल्द वेतन भुगतान नहीं किया गया तो हड़ताल करेंगे। अधिकांश भूमिगत खदानें हैैं। सीटू नेता सुंदरलाल महतो के मुताबिक, सरकार के निर्देश के बावजूद प्रबंधन ने हाथ खड़े कर दिए हैैं। तो, हमने भी अंडरग्राउंड में अनशन की चेतावनी दे दी।
लॉकडाउन ने ये भी दिखा दिया
सार्वजनिक उपक्रमों के कर्मी हमेशा से बेफिक्र रहे। आर्थिक संकट हो या मंदी, उनकी न छंटनी हो सकती है, न वेतन पर रोक ही संभव है। मगर, इस लॉकडाउन ने उनका भी वहम तोड़ दिया। देखिए, सेल के कर्मचारी अभी अपने वेतन के लिए आंदोलन की राह पर हैैं। अब दूसरा पहलू देखिए। बगल में ही निजी क्षेत्र की टाटा स्टील के कर्मियों के लिए कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्हें समय पर वेतन मिल चुका है। ऐसा नहीं कि आर्थिक संकट इनके लिए नहीं। संकट तो यहां भी है। ग्राहकों के पास इनका भी पैसा फंसा है, लेकिन समय पर निदान निकाल लिया गया। नियमित कर्मचारियों का वेतन भुगतान हो चुका है। ठेकाकर्मियों का भुगतान करने के लिए वेंडर्स को निर्देश दिया गया है। सिर्फ कुछ सुविधाओं में ही अस्थाई रोक लगाई गई है। अन्य भुगतान तो तय समय पर हो रहे हैं।
भरा खजाना, जेबें खाली
वह रुपया ही कैसा जो किसी काम न आए। दामोदा, चंद्रपुरा, दुग्दा ऐसे इलाके हैैं जो बोकारो जिले की सीमा पर हैैं। कॉलोनी इधर तो कोलियरी उधर और कोलियरी इधर तो कॉलोनी उधर। अब तक तो सब ठीक था। लॉकडाउन ने बेड़ा गर्क कर दिया। इन्हीं इलाकों के आसपास है तेलो। यहां आधा दर्जन के करीब कोरोना पॉजिटिव केस मिले। प्रशासन ने बॉर्डर तो सील कर ही दिया, तमाम बाजारों में भी कफ्र्यू लागू कर दिया। अब हालत यह है कि अधिकांश कोलियरी, वाशरी और पावर प्लांट के कर्मियों वाले इस इलाके में किसी बैैंक की कोई शाखा तक नहीं खुली है। मजदूर कह रहे कि इस माह के वेतन का क्या करेंगे? पिछले माह का वेतन भी खाते में ही रखा है। बैैंक ही नहीं खुले तो पैसा निकालें कैसे और खर्च कहां करें। समझिये बीच समुद्र टापू पर फंसे हैैं और प्यासे मर रहे।


