साल की शुरुआत अभिनेता अरशद वारसी ने असुर वेबसीरीज से डिजिटल पर डेब्यू के साथ की थी। अब उनकी फिल्म ‘दुर्गामती’ भी अमेजन प्राइम वीडियो पर 11 दिसंबर को रिलीज होगी। इस फिल्म में वह नेता के किरदार में नजर आएंगे। उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश…
सवाल : ‘लॉकडाउन के अनुभव कैसे रहे हैं? इस दौरान आपने क्या सीखा?
जवाब : मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा है। मैं अपनी जिदंगी पहले भी लॉकडाउन वाले माहौल में ही गुजारता रहा हूं। मुझे घर पर रहना हमेशा से पसंद रहा है। मैंने नहीं, बल्कि दुनिया ने काफी कुछ सीखा है। अच्छी बात यह हुई है कि एक ठहराव लोगों में आया है। हम पागलों की तरह एक रेस में भाग रहे थे। कई लोग कम काम करने लगे हैं, पहाड़ों में रहने के लिए शिफ्ट हो गए हैं, परिवार के साथ वक्त बिताने लग गए हैं।
सवाल : दुर्गामती में ईमानदार नेता का किरदार निभाना मुश्किल रहा?
जवाब : उम्र पर ध्यान देना पड़ा। मैंने कभी उम्रदराज किरदार नहीं निभाए थे। चाल-ढाल, बोलने का तरीके पर काम करना पड़ा। जो बेसिक बॉडी लैंग्वेज थी, उसे पकड़ना पड़ा।
सवाल : यह फिल्म तेलुगु फिल्म भागमती की रीमेक है। रीमेक फिल्म के किरदारों को निभाना आसान रहता होता है?
जवाब : मुझे मुश्किल लगता है, क्योंकि कमाल के एक्टर्स उन किरदारों को निभा चुके हैं। मेरी कोशिश होती है कि मैं बेहतर काम कर पाऊं, ताकि वह लोगों को पसंद आए। एक डर भी लगा रहता है। अक्सर लोग सोचते हैं कि रेफरेंस प्वाइंट मिल जाता है, लेकिन वह बात गलत है। आप वैसा काम नहीं कर सकते हैं, जैसा कोई और पहले कर चुका है। जो बेस्ट तरीका है, वह हो चुका है, अब आपको नया तरीका ढूंढना होता है।
सवाल : आप अच्छे डांसर भी हैं। ऐसे में जब फिल्मों में आपका डांस पार्ट नहीं होता है, तो उसे कितना मिस करते हैं?
जवाब : मैं मिस नहीं करता हूं। (हंसते हुए) एक सीक्रेट बताता हूं, मुझे फाइट और डांस करने में बहुत तकलीफ होती है। यह सब मेहनत का काम है और मुझे मेहनत करने की आदत नहीं है। पसीना आने लगता है। सिर्फ एक्टिंग करनी होती है, तो मुझे लगता है कि सेट पर गया हूं और दोस्तों से मिलकर घर आ गया हूं। स्क्रिप्ट में होगा तो डांस कर लूंगा, लेकिन अगर नहीं है तो मुझे कोई तकलीफ नहीं है।
सावल : डिजिटल पर डार्क कंटेंट आ रहा है। लगता है कि सिनेमा पर कॉमेडी और दूसरा जॉनर ज्यादा छाया रहेगा?
जवाब : डिजिटल पर निर्देशक और लेखक को एक किस्म की आजादी है। ज्यादातर लोग उस आजादी का फायदा उठाते हैं। हॉलीवुड में डिजिटल और फिल्म के कंटेंट में खास फर्क नहीं है। हमारे यहां कई चीजों में सेंसरशिप है। पारिवारिक दर्शक को ध्यान में रखकर फिल्में बनती हैं। डिजिटल पारिवारिक दर्शकों में बंधा हुआ नहीं है। अगर कल को हम सिनेमा से सेंसरशिप हटा देते हैं, तो वहां भी इसी किस्म का कंटेंट आने लगेगा। सिनेमा एक अनुभव होता है, जिसे आप अपने परिवार के साथ देखते हैं।
सवाल : आपने वैराइटी किरदार निभाए हैं। क्या किरदार कलाकारों की बुद्धिमत्ता को बढ़ाने में सहायक होते है?
जवाब : कलाकार अगर बुद्धिमान नहीं होगा तो कहानी और निर्देशक को समझ नहीं पाएगा। अच्छा एक्टर वहीं होता है, जो अपनी कहानी और किरदार समझ पाए। जितना ज्यादा काम करेंगे, उतनी ज्यादा समझ बढ़ जाती है। मैं भले ही जीनियस नहीं हूं, लेकिन बेवकूफ भी नहीं हूं।
सवाल : आपको नेता बनने का मौका मिले, तो फिल्म इंडस्ट्री में क्या बदलाव लाना चाहेंगे?
जवाब : मुझे नेता बनना ही नहीं है। मुझे राजनीति में जीरो दिलचस्पी है। मुझे इसके बारे में सोचना भी नहीं है। मेरा और राजनीति का कोई कनेक्शन ही नहीं है। अगर मुझे नेता बनने का मौका मिलेगा, तो मैं उस मौके को छोड़कर, किसी और को दे दूंगा।